11. अलकनन्दा

 

चितपुर अंचल में एक सुसज्जित कक्ष।

मदिराक्षी एक युवती के सम्मुख दिगिन्द्र सकपका कर बैठे हैं।

युवती हँसकर बोली- ‘‘लीजिये, पान खाईये एक।’’

‘‘हाँ- वही तो!’’

त्रस्त दिगिन्द्र ने एक पान उठा लिया।

‘‘मासिक पत्रिका आपलोगों की निकलवा ही दूँगी- यह मेरा वादा है। निश्चित रुप से निकलवा दूँगी। किन्तु इसके बदले मुझे क्या देंगे, बताईये।’’

युवती की कौतुकदीप्त नयनों में हँसी थिरकने लगी।

दिगिन्द्र भला क्या उत्तर दे! उनकी अवस्था उस समय शोचनीय थी।

गर्म दूध में डाले जाने पर पाँवरोटी की जो अवस्था होती है, दिगिन्द्र की अवस्था बहुत कुछ वैसी ही थी- बाह्य ज्ञान शून्य।