14. वैष्णव-शाक्त

 

गोस्वामी के पास जो यात्री खड़ा था, उसके कँधे से एक प्रकाण्ड मृदंग लटक रहा था। ट्रेन छूटने के बाद गाड़ी के हिचकोलों के साथ-साथ मृदंग का एक सिरा गोस्वामी महाशय की नाक के आगे दोलन करने लगा। दो-एक बार टकराया भी। मृदंग एक उच्चस्तरीय वैष्णवीय वाद्ययंत्र होने के बावजूद नासिकाग्र पर इसे सुखकर नहीं कहा जा सकता। इस बात को समझकर गोस्वामी ने मृदुकण्ठ से मृदंगधारी से कहा, ‘‘मेहरबानी करके जरा हटके खड़े होते भाई साहब-’’